याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी की विद्वत्ता

याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी की कहानी भारतीय दर्शन और ज्ञान की अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना है। याज्ञवल्क्य, जो वेदों के महान ज्ञाता थे, एक समय अपनी पत्नी मैत्रेयी से संवाद कर रहे थे। एक दिन याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी को अपनी संपत्ति का हिस्सा देने का प्रस्ताव दिया, ताकि वह अपनी जीवन यात्रा स्वतंत्रता से तय कर सकें।

मैत्रेयी ने इसका उत्तर दिया, “यदि मैं संपत्ति प्राप्त करूं, तो क्या वह मुझे मोक्ष दिला सकती है?” यह सवाल एक गहरे तात्त्विक प्रश्न का संकेत था, जो जीवन के वास्तविक उद्देश्य से जुड़ा था। याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, “नहीं, संपत्ति से केवल भौतिक सुख मिलते हैं, यह आत्मा के उद्धार के लिए नहीं है।”

फिर, मैत्रेयी ने और अधिक गहरे सवाल पूछे, जिनका याज्ञवल्क्य ने विस्तार से उत्तर दिया।

प्रश्न 1: “आत्मा क्या है और वह क्या करती है?”
उत्तर: याज्ञवल्क्य ने कहा, “आत्मा अमर है, यह न तो पैदा होती है, न मरती है। यह अनंत है और शरीर के रूप में केवल एक अस्थायी आवरण पहनती है। आत्मा ही जीवन की वास्तविकता है, और यही शाश्वत सत्य है।”

प्रश्न 2: “क्या कोई ब्रह्म है?”
उत्तर: याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, “हां, ब्रह्म है, वह परम सत्य है जो साकार और निराकार दोनों रूपों में है। ब्रह्म से ही सारी सृष्टि उत्पन्न होती है और वहीं समाहित होती है। वह एक अद्वितीय शक्ति है, जो सब कुछ समाहित किए हुए है।”

प्रश्न 3: “क्या आत्मा और ब्रह्म का कोई भेद है?”
उत्तर: याज्ञवल्क्य ने कहा, “आत्मा और ब्रह्म दोनों एक ही हैं। आत्मा ब्रह्म का रूप है। आत्मा में और ब्रह्म में कोई अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों का स्वभाव एक ही है।”

मैत्रेयी ने इन उत्तरों को सुनकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझा। याज्ञवल्क्य ने भी उसे यह ज्ञान दिया कि आत्मज्ञान ही सच्चे मोक्ष का मार्ग है, और जो ब्रह्म और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझता है, वही सच्चा ज्ञान प्राप्त करता है।

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